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Showing posts from October, 2023

व्यभिचार

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  व्यभिचार   किसी समय एक अपराध धा । व्यभिचार, विवाहित लोगों के मध्य में अपने पति या पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य के साथ किए जाने वाले व्यभिचार को संदर्भित करता है, और यह शब्द पुराने नियम में शाब्दिक और रूपक अर्थात् दोनों में अर्थों में उपयोग किया गया है। स्त्री पुरुषों की जननेन्द्रियाँ शरीर के अन्य समस्त अंगों की अपेक्षा अधिक चैतन्य सजीव, कोमल, सूक्ष्म, प्राण विद्युत से युक्त होती हैं। मानव शरीर के सूक्ष्म तत्वों को जानने वाले बताते हैं कि स्त्री में ऋण (निगेटिव) और पुरुष में धन (पाजेटिव) विद्युत का भंडार होता है। दर्श स्पर्श से भी यह विद्युत स्त्री पुरुषों में एक विचित्र कम्पन उत्पन्न करती रहती है। परन्तु शरीर के सजीव तम प्राण केन्द्र गुह्य स्थानों का जब दोनों एकीकरण करते हैं तब तो एक शरीर व्यापी तूफान उत्पन्न हो जाता है। दोनों के शरीर के विद्युत परिमाण दोनों के अन्दर अत्यन्त वेग और आवेश के साथ प्रवेश करते हैं और दोनों में एक शक्तिशाली अंतरंग संबंध-प्रेम उत्पन्न करते हैं। एक दूसरे के सूक्ष्म तत्वों का एक दूसरे में बड़ी तीव्र गति से प्रचुर परिमाण में आदान-प्रदान होता है। यही का...

अपराध शास्त्र

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अपराध , अपराधी, आपराधिक स्वभाव तथा अपराधियों के सुधार का  वैज्ञानिक  अध्ययन  अपराध शास्त्र  (Criminology) के अन्तर्गत किया जाता है। इसके अन्तर्गत अपराध के प्रति समाज के रवैया, अपराध के कारण, अपराध के परिणाम, अपराध के प्रकार एवं अपराध की रोकथाम का भी अध्ययन किया जाता है परिचय [ संपादित करें ] समाज  जिसमें व्यक्ति रहता है,  मानवीय   समाज  कहलाता है। मानवीय समाज में मानवीय  नियम  और  कानून   समाज   व्यवस्था  को चलाने के लिये अलग-अलग  समाज  के लिये बनाये जाते है। बने हुए सामाजिक नियमों को तोडने को अपराध की श्रेणी में गिना जाता है। सामाजिक नियमों में  आर्थिक ,  राजनैतिक ,  धार्मिक  और  मानवीय   रहन सहन  के  नियम , विभिन्न  समय  और सभ्यताओं के अनुसार प्रतिपादित किये जाते हैं। अपराध जिस समय मानव समाज की रचना हुई अर्थात्‌ मनुष्य ने अपना समाजिक संगठन प्रारंभ किया, उसी समय से उसने अपने संगठन की रक्षा के लिए नैतिक, सामाजिक आदेश बनाए। उन आदेशो का पालन मनुष्य का 'धर्म' बत...